नई दिल्ली: देश में संपत्तियों के ध्वस्तीकरण अभियान से संबंधित अखिल भारतीय दिशा-निर्देश तैयार करने के मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय ने आज बुधवार को फैसला सुनाया. सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि आरोपी होने पर आप किसी का भी घर गिरा नहीं सकते. सख्त रुख अपनाते हुए अदालत ने कहा कि किसी भी कीमत पर जिम्मेदार अधिकारियों को बख्शा नहीं जाएगा. बुलडोजर जस्टिस स्वीकार्य नहीं है. यह फैसला न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने सुनाया.
कोर्ट ने कहा कि कानून का पालन करना अनिवार्य है. देश में कानून का राज होना आवश्यक है. एक सदस्य आरोपी है तो सजा पूरे परिवार को नहीं मिल सकती. वहीं, कोर्ट ने कहा कि कानून का उल्लंघन है बुलडोजर एक्शन. प्रशासन कानून से बड़ा नहीं हो सकता. पहले नोटिस भेजना जरूरी है. अदालत ने कहा कि अफसर कोर्ट की तरह कार्य न करें. सरकारी शक्ति का दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए. किसी का घर एक सपने की तरह होता है.
कोर्ट ने कहा कि अगर किसी आरोपी का घर गलत तरीके से गिराया जाता है तो पीड़ित परिवार को मुआवजा देना होगा. कोर्ट ने कहा कि घर तोड़ना मौलिक अधिकारों का हनन है. कोर्ट ने कहा कि 15 दिन पहले विधिवत तरीके से नोटिस भेजा जाना चाहिए. वहीं, अदालत ने कहा कि तीन महीने के अंदर एक पोर्टल बनाया जाए.
इससे पहले 1 अक्टूबर को शीर्ष अदालत ने मामले की लंबी सुनवाई के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया था. 1 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने बिना अनुमति के किसी भी संपत्ति को ध्वस्त न करने के अंतरिम आदेश को भी अगले आदेश तक बढ़ा दिया था. हालांकि, अंतरिम आदेश सड़कों, फुटपाथों आदि पर धार्मिक संरचनाओं सहित किसी भी अनधिकृत निर्माण पर लागू नहीं होगा. सुप्रीम कोर्ट ने पहले टिप्पणी की थी कि सार्वजनिक सुरक्षा सर्वोपरि है और चाहे वह मंदिर हो, दरगाह हो या सड़क के बीच में गुरुद्वारा हो, उसे जाना ही होगा क्योंकि वह सार्वजनिक सुरक्षा में बाधा नहीं डाल सकता.
देश की सर्वोच्च अदालत ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की थी कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और स्पष्ट किया कि वह पूरे भारत के लिए निर्देश जारी करेगी जो सभी धर्मों पर लागू होंगे. अदालत ने यह स्पष्ट किया कि केवल इस आधार पर विध्वंस नहीं किया जा सकता कि व्यक्ति आरोपी या दोषी है.
शीर्ष अदालत ने कहा था कि उसे केवल नगर निगम कानूनों के दुरुपयोग की चिंता है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर भी चिंता व्यक्त की थी कि अगर दो संरचनाएं उल्लंघन करती हैं और केवल एक के खिलाफ कार्रवाई की जाती है और बाद में पता चलता है कि उसका आपराधिक इतिहास है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि अनधिकृत निर्माणों के लिए कानून होना चाहिए और यह धर्म या आस्था या विश्वास पर निर्भर नहीं है.