देहरादून: सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटी फाउंडेशन (एसडीसी) ने उत्तराखंड डिजास्टर एंड एक्सीडेंट एनालिसिस इनिशिएटिव (UDAAI) रिपोर्ट जारी की है. यह रिपोर्ट हर साल जारी की जाती है. इस साल की रिपोर्ट में मानसून के आखिरी तीन महीनों में घटी आपदा की घटनाओं पर विश्लेषण कर भविष्य की चुनौतियों को लेकर अलर्ट किया गया है.
एसडीसी फाउंडेशन ने जारी की है त्रैमासिक रिपोर्ट: दरअसल, सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटी फाउंडेशन (SDC) ने इस साल के मानसून सीजन 2025 के आखिरी तीन महीने जुलाई, अगस्त और सितंबर की त्रैमासिक रिपोर्ट तैयार की है. जिसमें एक बार फिर से इन तीन महीना में हुई आपदा की घटनाओं का विस्तार से विश्लेषण किया है.
वहीं, विश्लेषण के बाद बताया है कि किस तरह से अव्यवस्थित विकास, नाजुक भूगोल और चरम जलवायु परिस्थितियां उत्तराखंड को लगातार गहराते आपदा चक्र में धकेल रही हैं. एसडीसी की रिपोर्ट में इस तीनों महीने की भयावह घटनाओं का विस्तृत विवरण है. मानसून सीजन के आखिरी तीन महीने में किस तरह से एक्सट्रीम क्लाइमेट इवेंट्स एक चरणबद्ध तरीके से उत्तराखंड में घटे हैं, इसको लेकर इस रिपोर्ट में जिक्र किया गया है.
रिपोर्ट तैयार करने वाले एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल बताते हैं कि जुलाई महीने की शुरुआत उत्तराखंड के उच्च हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियर लेक की खबरों से हुई थी, जिसमें बताया गया कि उत्तराखंड के उच्च हिमालयी क्षेत्र में किस तरह से ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) झीलें लगातार एक्टिव हैं और इन्हें लेकर सतर्क रहने की जरूरत है.
इतना ही नहीं वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान इस संबंध में आगाह भी कर चुका है. वहीं, इसके बाद अगस्त आते ही आपदा की शुरुआत धराली से हुई. जिस पर पूरे देश और दुनिया का ध्यान गया. जहां सैलाब में कई लोग लापता हो गए तो धराली कस्बे का नक्शा ही बदल गया. इसी बीच पौड़ी में भी तबाही देखने को मिली.
भले धराली आपदा के दौरान ही पौड़ी जिले में घटी घटनाओं को उस तरह से सुर्खियां नहीं मिल पाई, लेकिन वहां पर भी काफी नुकसान और जान माल की हानि देखने को मिली. इसी तरह से अगस्त का महीना इस साल आपदा के लिए लिहाज से बेहद ऐतिहासिक गुजरी. अगस्त महीने में केवल धराली ही नहीं, पौड़ी और थराली में भी घटनाएं हुई.
इस तरह से जुलाई महीने में ग्लेशियर लेक से शुरू हुई कहानी अगस्त में धराली और थराली जैसे पहाड़ी इलाकों में पहुंची. वहीं, सितंबर आते-आते आपदा का यह चक्र मैदान की ओर घूम गया. जहां दून घाटी को प्राकृतिक आपदाओं ने ऐसे जख्म दिए, जो आगे कई सालों तक याद किए जाएंगे.
सितंबर महीने में जहां केदारनाथ मार्ग पर दो तीर्थयात्रियों की मौत और कई के घायल होने से लेकर देहरादून, चमोली और पौड़ी जिलों में तबाही का जिक्र किया गया है. केवल देहरादून में ही सहस्रधारा और मालदेवता क्षेत्रों में हुई मूसलाधार बारिश से मची तबाही में 27 लोगों की मौत हुई तो 16 लोग लापता हो गए. कई पुल और सड़क बह गए. इस भीषण आपदा के कारण मसूरी और आसपास के क्षेत्रों में हजारों लोग फंस गए.
UDAAI रिपोर्ट प्रशासनिक लापरवाही पर भी सवाल उठाती है. जैसे कि अत्यधिक संवेदनशील वसुधारा ग्लेशियल झील पर सर्वे पूरा होने के 11 महीने बाद भी अर्ली वार्निंग सिस्टम न लगाया जाना. श्रीनगर में निवासियों को 16,200 करोड़ रुपए की लागत से निर्माणाधीन ऋषिकेश–कर्णप्रयाग रेल परियोजना के ब्लास्टिंग और सुरंग निर्माण से मकानों में आई दरारों के चलते अपने घर छोड़ने पड़े.
वहीं, बदरीनाथ हाईवे पर लगातार भूस्खलन से आवागमन प्रभावित रहा. सितंबर की यूडीएएआई रिपोर्ट उत्तराखंड में बढ़ते पर्यावरणीय तनाव की सशक्त तस्वीर पेश करती है. जहां अवैज्ञानिक निर्माण, अव्यवस्थित विकास और देरी से किए जा रहे शमनात्मक उपाय हिमालयी क्षेत्र को और ज्यादा असुरक्षित बना रहे हैं.
रिपोर्ट के जरिए विशेषज्ञ आईपीसीसी के लेखक अंजल प्रकाश और पर्यावरण कार्यकर्ता सुरेश भाई ने भी चेताया है कि अवैज्ञानिक निर्माण पहाड़ी ढलानों की स्थिरता को कमजोर कर रहा है. ऐसी परियोजनाएं सुरक्षा के बजाय आपदा का कारण बनती जा रही हैं. ऐसे में इसे लेकर गंभीर होना होगा.
“दून घाटी की बाढ़ और पहाड़ों की अस्थिरता अलग-अलग घटनाएं नहीं हैं, बल्कि यह हमारे अस्थिर विकास मॉडल की चेतावनी है. उत्तराखंड की आपदाएं अब ज्यादातर मानवीय है. यदि हमने पारिस्थितिकीय संवेदनशीलता, आपदा की तैयारी और जलवायु परिवर्तन पर ध्यान नहीं दिया तो स्थिति और गंभीर होगी.”- अनूप नौटियाल, संस्थापक, एसडीसी फाउंडेशन
रिपोर्ट में ये भी दर्ज है कि धराली त्रासदी के 50 दिन बीत जाने के बाद भी कभी जीवंत रहा यह गांव आज वीरान पड़ा है, जो न केवल मानवीय क्षति का प्रतीक है, बल्कि राज्य की धीमी पुनर्वास प्रणाली पर भी प्रश्न खड़े करता है. अक्टूबर 2022 में यूडीएएआई यानी उत्तराखंड डिजास्टर एंड एक्सीडेंट एनालिसिस इनिशिएटिव शुरू की थी.
उत्तराखंड की आपदाओं और जलवायु घटनाओं का किया जा रहा दस्तावेजीकरण: यह 36वीं मासिक रिपोर्ट है, जो उत्तराखंड की आपदाओं और चरम जलवायु घटनाओं के जोखिमों का लगातार तीन सालों से निर्बाध दस्तावेजीकरण कर रही है. यह पहल अब राज्य में जलवायु परिवर्तन और अव्यवस्थित विकास के प्रभावों का एक सशक्त सार्वजनिक अभिलेख बन चुकी है.
अनूप नौटियाल ने कहा कि उनकी संस्था जल्द ही जुलाई–सितंबर 2025 की त्रैमासिक विशेष रिपोर्ट जारी करेगी. जिसमें पिछले तीन महीनों में राज्यभर में हुई आपदाओं और चरम जलवायु घटनाओं का संकलन एवं विश्लेषण शामिल होगा. यह रिपोर्ट उत्तराखंड के 25वें राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर जारी की जाएगी. जो राज्य में लचीलापन, जिम्मेदार योजना और सतत पर्वतीय विकास पर गहन विमर्श को प्रोत्साहित करेगी.







