न्यूज़ डेस्क: जॉन एलिया एक ऐसा मशहूर नाम जो किसी पारिचय का मोहताज नहीं है. जॉन एलिया साहब ने जुदाई, मोहब्बत, तन्हाई पर ऐसे कई शेर और शायरियां लिखी हैं जो काफी मशहूर हुई हैं. जॉन साहब के शेर आज भले ही लोगों के दिलों की धड़कन की तरह है लेकिन खुद उन्होंने एक बार कहा था कि – अपनी शायरी का जितना मुंकिर (जिसे रिजेक्ट किया जा चुका हो) मैं हूं, उतना मुंकिर मेरा कोई बदतरीन दुश्मन भी न होगा. कभी कभी तो मुझे अपनी शायरी बुरी, बेतुकी, लगती है इसलिए अब तक मेरा कोई मज्मूआ शाये नहीं हुआ और जब तक खुदा ही शाये नहीं कराएगा. उस वक्त तक शाये होगा भी नहीं.’ आइए आज जॉन एलिया की एक मशहूर ग़ज़ल से आपको रूबरू कराते हैं…
उम्र गुज़रेगी इंतहान में क्या…
उम्र गुज़रेगी इम्तहान में क्या?
दाग ही देंगे मुझको दान में क्या?
मेरी हर बात बेअसर ही रही
नुक्स है कुछ मेरे बयान में क्या?
बोलते क्यो नहीं मेरे अपने
आबले पड़ गये ज़बान में क्या?
मुझको तो कोई टोकता भी नहीं
यही होता है खानदान मे क्या?
अपनी महरूमिया छुपाते है
हम गरीबो की आन-बान में क्या?
वो मिले तो ये पूछना है मुझे
अब भी हूँ मै तेरी अमान में क्या?
यूँ जो तकता है आसमान को तू
कोई रहता है आसमान में क्या?
है नसीम-ए-बहार गर्दालूद
खाक उड़ती है उस मकान में क्या
ये मुझे चैन क्यो नहीं पड़ता
एक ही शख्स था जहान में क्या?