March 29, 2024 1:05 PM

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लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारी : संतो की मांग…धर्मनगरी है हरिद्वार, पार्टियां उतारें “संत उम्मीदवार”

देहरादून: जैसे जैसे लोकसभाचुनाव करीब आते जा रहा है वैसे वैसे वैसे नेताओं की कसरत तेज होती जा रही है और उत्तराखंड मे सभी पार्टियों के लोकसभा चुनाव मे टिकट के दावेदारों ने प्रचार प्रसार की गतिविधियां भी तेज कर दी हैं हैं लेकिन हरिद्वार लोकसभा सीट पर संतों ने एसी मांग कर दी है जिसे सुनकर आप भी हैरत मे पड़ जाएंगे जी हाँ आपको बता दें की साधु-संतों ने हरिद्वार लोकसभा चुनावों में संत को टिकट देने की मांग की है। संतो ने तर्क दिया है कि हरिद्वार तीर्थ क्षेत्र है और तीर्थ क्षेत्र की मर्यादा बने रहने के लिए संत को ही यहां का लोकसभा प्रतिनिधि होना चाहिए। इसलिए वे सभी राजनीतिक दलों से अनुरोध करते हैं कि सभी दल किसी संत को ही चुनाव मैदान में उतारे। साधु-संतों ने ये भी चेतावनी दी है कि अगर राजनीतिक दल संत को टिकट नहीं देते हैं तो सभी संत मिलकर अपने किसी कैंडिडेट को चुनकर निर्दलीय भी चुनाव मैदान में उतार सकते हैं।  ये मांग प्रबोधानंद गिरी, अध्यक्ष, हिंदू रक्षा सेना ने की है और इसका समर्थन आचार्य प्रमोद कृष्णम, वरिष्ठ नेता कांग्रेस, वीरेंद्र बिष्ट, प्रदेश प्रवक्ता बीजेपी, और  महंत रवींद्र पुरी,  अध्यक्ष अखाड़ा परिषद, रुपेंद्र प्रकाश, महामंडलेश्वर ने भी किया है। आचार्य प्रमोद कृष्णम ने तो उत्तराखंड का मुख्यमंत्री भी संत बनाने की मांग की है।

संतों की इस मांग ने तमाम राजनैतिक दलों के होश उड़ा दिये हैं संतों का तर्क सुन राजनीतिक प्रातिकृयाएन भी आणि शुरू हो गई हैं राजनैतिक दल संतों की इस मांग को नकार भी नहीं सकते लिहाजा वो संतों की बात को सही ठहरा रहे हैं … अगर फिलहाल की बात करें तो हरिद्वार लोकसभा सीट से रमेश पोखरियाल निशंक संसद हैं जो केंद्रीय सिक्षा मंत्री  भी रह चुके हैं और फिर BJP से दावेदारी मे हैं अगर बात कांग्रेस की करें तो हरीश रावत और हरक सिंह रावत दोनों की दावेदारी मजबूत है लेकिन सवाल ये हैं की अगर ये दोनों ही पार्टियां संतों की मांग के मुताबिक उम्मीदवार उतरती हैं तो चेहरा कौन होगा?

फिलहाल संतों की मांग ने पार्टियों के होश उड़ा दिये हैं संतों ने टिकट लेने का तर्क ऐसा दिया है जिसे कोई नकार भी नहीं सकता है संतों ने ये भी एलानिया कहा है की अगर राजनैतिक दल लोकसभा चुनाव मे हरिद्वार से संत चेहरा नहीं उतारती तो मजबूरन संतों को अपना निर्दलीय प्रातियाशी चुनावी मैदान मे उतारना पड़ेगा, अब देखने वाली बात ये होगी की संतों की मांग राजनैतिक दल पूरी करते हैं या नहीं और अगर नहीं करते हैं तो संतों को कैसे मनाते हैं…..