आगरा: वैसे तो ताजमहल पूरी दुनिया में मोहब्बत की निशानी माना जाता है। पूरी दुनिया में इस संगमरमर की इमारत की खूबसूरती की तारीफ करते हैं। लेकिन इस इमारत के आसपास बसे पांच गांव के लोग इसे अभिशाप से कम नहीं मानते। असल में ताजमहल की सिक्योरिटी बढ़ाए जाने से इन गांव वालों की मुश्किलें काफी बढ़ गई हैं। नतीजा, इन गांवों में रहने वालों के घर पर ना तो रिश्तेदार आ पाते हैं और न ही गांव के युवाओं के लिए रिश्ता आ पाता है। इसके चलते इन गांवों के 40 फीसदी युवा कुंवारे रह गये हैं।
1992 से बढ़ी मुश्किल
ताजमहल को कोसने के लिए अभिशप्त ये गांव हैं गढ़ी बंगस, नगला पैमा, तल्फ़ी नगला, अहमद बुखारी और नगला ढींग, जिनका रास्ता ताजमहल के बगल से गुजरता है। इन गांव वालों की मुसीबत 1992 से बढ़ गई। तब उच्चतम न्यायालय ने ताजमहल को अपनी निगरानी में ले लिया। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार ताजमहल की सिक्योरिटी बेहद चाक-चौबंद कर दी गई। सुरक्षा की दृष्टि से इन गांवों की ओर जाने वाले व्यक्ति को प्रशासन से ‘पास’ लेने की जरूरत होती है। गांव के लोगों के ‘पास’ पहले से बने हुए हैं, लेकिन उनके रिश्तेदारों को गांव में आने के लिये हर बार नया पास बनवाना होता है।
चेक प्वॉइंट पर होता है वेरिफिकेशन
ताजमहल से इन गांवों की ओर जाने वाले रास्ते पर ‘चेक प्वाइंट’ बने हैं। जिसके घर पनर कोई रिश्तेदार आता है उसे यहां बुलाया जाता है। इसके बाद ही उन्हें गांव में प्रवेश करने की अनुमति मिलती है। किसी भी मांगलिक कार्यक्रम में इन गांव वालों के रिलेटिव्स नहीं पहुंच पाते हैं। यही नहीं, शादी-विवाह के कार्ड देने और युवाओं के रिश्ते के लिए भी लोग यहां पहुंच नहीं पा रहे। इसके चलते इन गांवों के 40 से 45 प्रतिशत युवा कुंवारे ही रह गए हैं। 1992 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा ताजमहल को निगरानी में लिए जाने के बाद इन गांव के लोगों को शहर जाने के लिए दशहरा घाट के पास लगे नगला पैमा पुलिस चेक पोस्ट से होकर गुजरना पड़ता है। या फिर 10 किमी घूमकर धांधूपुरा होकर जाना पड़ता है। इन गांवों की ओर जाने वाले रास्ते पर रोजाना सुबह और शाम थोड़ी देर के लिए बैटरी रिक्शा चलने की परमिशन मिलती है।
बीमार होने पर और मुश्किल
मुश्किल तब बढ़ती है जब इस गांव का कोई व्यक्ति बीमार पड़ता है कोई महिला प्रेगनेंट होती है। ऐसी हालत में यहां पर केवल सरकारी एंबुलेंस ही पहुंच पाती है। इसके अलावा ताजमहल के रात्रि दर्शन वाले महीने के पांच दिनों में इन गांववालों को सुरक्षा कारणों से घर में ही कैद रहना पड़ता है। घरों में कैद रहने की स्थिति गाहे-ब-गाहे तब भी पैदा होती रहती जब कोई वीआईपी मेहमान ताजमहल का दीदार करने आते हैं। बीते तीन दशक से ऐसे हालात से दो-चार हो रहे इन गांवों के लोग कोसते हुए यही कहने को मजबूर हैं, “काश! ये ताजमहल जैसी इमारत हमारे आस-पास नहीं होती।” अब तो स्थिति तो यह भी आ गई है कि इस समस्या से आजिज आ चुके इन गांवों के कुछ लोग पलायन भी करने लगे हैं।