April 19, 2024 11:54 PM

Search
Close this search box.

पत्नी भी रहे तैयार ! तलाक के बाद पति को भी गुजारा भत्ता पाने का अधिकार ! पति की मदद करे पत्नी – कोर्ट

नई दिल्ली: आमतौर पर हमने यही सुना है कि पति से अलग होने के बाद पत्नी गुजारा भत्ता पाने की हकदार होती है। लेकिन क्या कभी सुना है कि किसी महिला ने अपने पति को गुजारा भत्ता दे, अगर नहीं तो अब सुन लीजिए। हाल ही में एक कोर्ट ने  एक महिला को आदेश दिया है कि वह अपने पूर्व पति को 3 हजार रुपये गुजारा भत्ता देगी।

महिला के स्कूल को भी दिया निर्देश

यह फैसला सुनाया है बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने। महाराष्ट्र के नांदेड़ से आए एक मामले में  स्थानीय कोर्ट ने महिला को अपने पूर्व पति को हर महीने 3,000 रुपये गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया था, अब उस फैसले को बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा है। कोर्ट ने  महिला के स्कूल को भी निर्देश दे दिया है वह हर महीने महिला की सैलरी से पांच हजार रुपये काट कर उसे कोर्ट में जमा करवाए।

पति ने की थी 15,000 रुपये की मांग

पति की खराब आर्थिक स्थिति को देखते हुए अदालत को ये फैसला सुनाना पड़ा। दरसअल इस कपल की शादी 17 अप्रैल 1992 को हुई थी। कुछ सालों बाद दोनों ने एक दूसरे से अलग होने का फैसला लिया।  तलाक के बाद पति ने याचिका दायर करते हुए कहा कि उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और पत्नी के पास जॉब है जिसे देखते हुए उसने पत्नी से 15,000 रुपये प्रति माह की दर से स्थायी गुजारा भत्ता देने की मांग की।

पत्नी ने गुजारा भत्ता देने से कर दिया था इंकार

पति ने अपनी याचिका में यह भी कहा था कि पत्नी को पढ़ाने में उसका काफी योगदान था। पति ने दलील दी कि उसे स्वास्थ्य से जुड़ी कईं समस्याएं है जिसके कारण उसकी सेहत ठीक नहीं रहती, जबकि उसकी पत्नी महीने का 30 हजार कमाती है। इस पर महिला ने कहा था कि- उसका पति उसकी कमाई पर निर्भर नहीं है लेकिन इस रिश्ते में उसकी एक बेटी भी है जो मां की कमाई पर निर्भर है. इसलिए पति द्वारा किए गए गुजारा भत्ता के मांग को खारिज किया जाना चाहिए।

औरंगाबाद हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला

औरंगाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा-  हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 24 और 25 को एक साथ पढ़ने से पता चलता है कि अगर पति या पत्नी में से किसी एक की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और दूसरे की माली हालत अच्छी है तो पहला पक्ष गुजारे भत्ते की मांग कर सकता है। यह भत्ता केस में अंतिम फैसला आने तक या हमेशा के लिए भी हो सकता है।