नई दिल्ली: तकनीक के क्षेत्र में विश्व की अग्रणी कंपनियों में सम्मिलित गूगल की अल्फाबेट हो या फिर फेसबुक की मेटा, इस तरह की अधिकांश कंपनियां समाचार पत्रों और न्यूज वेबसाइट के कंटेंट आदि का उपयोग कर मिनटों में करोड़ों रुपये कमा लेती हैं, जबकि उस कंटेंट के मूल निर्माता यानी उसे तैयार करने वाले प्रकाशक को इसके बदले में कुछ भी नहीं मिल पाता है या फिर चुनिंदा मामलों में बहुत ही कम हिस्सा मिल पाता है। परंतु अब ऐसा नहीं होगा, क्योंकि भारत सरकार इस दिशा में एक नया कानून बनाने की तैयारी में जुट गई है। ऐसे में इससे संबंधित तमाम पहलुओं को समझा जाना चाहिए। भारत में आज लगभग हर शिक्षित वयस्क के हाथ में एक स्मार्टफोन है। ऐसे में इंटरनेट मीडिया का दायरा भी विस्तृत होता जा रहा है। साथ ही, स्मार्टफोन के माध्यम से इंटरनेट मीडिया का उपयोग बढ़ता जा रहा है। इसके जरिये न्यूज और वीडियो जैसे कंटेंट तक लोगों की पहुंच को बढ़ाने के लिए गूगल और फेसबुक जैसे प्लेटफार्म प्रयासरत रहते हैं। इससे उन्हें बहुत कमाई होती है। किसी अन्य समाचार पत्र या न्यूज वेबसाइट आदि के कंटेंट को वे उपयोग में लाते हैं, जिससे उनकी कमाई बढ़ जाती है। परंतु संबंधित समाचार पत्र या वेबसाइट आदि को उसका हिस्सा नहीं मिल पाता है। ऐसे में इस संबंध में नए सिरे से विचार किया जा रहा है।
इस संबंध में उल्लेखनीय यह है कि एक तरफ भारतीय यूट्यूबर को अमेरिकी व्यूअर्स और सब्सक्राइबर्स की बदौलत होने वाली कमाई में से यूट्यूब को 24 से 30 प्रतिशत तक अतिरिक्त टैक्स चुकाना पड़ रहा है। साथ ही, गूगल को न्यूज समेत डिजिटल प्लेटफार्म के कंटेंट के बल पर सर्च की मिली बढ़त से प्रत्येक तिमाही औसतन 62 अरब डालर तक की कमाई हो जाती है। जबकि कंटेंट के असली मालिकों को एक पैसा भी नहीं मिलता है। यानी अल्फाबेट कंपनी को गूगल सर्च और यूट्यूब से होने वाली सबसे अधिक कमाई में भारत के गांव से लेकर शहर-महानगर तक फैले कंटेंट प्रदाताओं का काफी योगदान है। लाखों लोग गूगल सर्च पर हर मिनट कुछ न कुछ सर्च कर रहे होते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, गूगल उस सर्च से एक मिनट में करीब दो करोड़ रुपये की कमाई कर लेता है। या कहें कि गूगल कंटेंट की बदौलत ही अपने ग्राहकों की संख्या में बढ़ोतरी कर मोटा मुनाफा कमाता है, जबकि कंटेंट तैयार करने वालों को इसकी भनक तक नहीं लग पाती। ये टेक कंपनियां विज्ञापनदाताओं के विज्ञापनों को न्यूज और इंटरनेट प्लेटफार्म से हासिल यूनिक कंटेंट के साथ डिस्प्ले करवाती हैं। उसे एसईओ कीवर्ड के जरिए लोगों तक पहुंचाती है। बदले में उनकी शर्तो को पालन करने वाले कुछ वेब पोर्टल को विज्ञापन से पैसा मिल पाता है, जबकि सभी को उनके कंटेंट के बदले में कुछ तो मिलना ही चाहिए। ऐसे कंटेंट प्रदाताओं में समाचार पत्रों के प्रकाशक और इंटरनेट प्लेटफार्म आदि शामिल हैं।
गूगल सर्च मार्केट
बीते एक दशक से गूगल का सर्च मार्केट में एकाधिकार बन चुका है। उसकी कमाई एडवर्डस और एडसेंस सर्विस के जरिए होती है। वह उनसे विज्ञापनों का मुनाफा कमाता है। इसके अलावा कई दूसरी सेवाओं से भी गूगल की कमाई होती है, लेकिन 70 प्रतिशत से अधिक आमदनी एडवर्डस और उसके बाद एडसेंस से ही है। इसमें टेक्स्ट, आडियो या वीडियो के तौर पर हर किस्म के कंटेंट वाले यूट्यूब का सहयोग है। इनमें न्यूज कंटेंट का जबरदस्त वर्चस्व बढ़ा है। लाखों की संख्या में यूट्यूब पर स्थानीय पत्रकारों ने भी निजी न्यूज चैनल शुरू कर दिया है। इनमें महज कुछ के सब्सक्राइबर्स ही लाख से अधिक हैं, जो विज्ञापनों से होने वाली आमदनी के भरोसे हैं। उनके कंटेंट का खर्च मुश्किल से निकल पाता है। जबकि इस पर डिस्प्ले होने वाले विज्ञापनों से सेकेंड के हिसाब से क्लिक-दर-क्लिक यूट्यूबर के साथ-साथ गूगल भी कमाई कर लेता है। साथ ही संबंधित मीडिया हाउस को समाचार प्रकाशित करने के लिए बहुत पैसा खर्च करना पड़ता है। इसमें स्टूडियो, कार्यालय, उपकरण, पत्रकार, कर्मचारियों के वेतन और परिवहन आदि का खर्च शामिल है। उनकी कमाई का पहला स्रोत विज्ञापन है, वह भी तब आ सकता है जब अच्छा ट्रैफिक मिले। यह उनकी मर्जी पर निर्भर है। यानी गूगल अपने एल्गोरिदम के माध्यम से यह निर्धारित करता है कि कौन सी न्यूज वेबसाइट सबसे पहले उसके प्लेटफार्म पर खोजी जा सकती है।
इनसे जुड़ी विशेष बात कंटेंट की है कि अगर कंटेंट है तभी विज्ञापन के व्यूअर्स, विजिटर्स और सब्सक्राइबर्स हैं। महंगे विज्ञापन तभी मिल सकते हैं, जब कंटेंट में दम होगा। उसके लिए कंटेंट के रूप में न्यूज की अहमियत को गूगल बखूबी समझता है। इसे देखते हुए ही उसने अपने इस सेक्शन को काफी सुविधाजनक बनाकर कई खंड बना लिए हैं।

दूसरों के कंटेंट से कमाई
जब आप गूगल न्यूज पर जाते हैं, तब पहले की तरह सीधा-सपाट न्यूज नहीं दिखता है, बल्कि वहां विषयों की विविधता नजर आती है। उसमें कुछ नए फीचर भी शामिल कर लिए गए हैं। नए विषय के तौर पर टेक्नोलाजी, साइंस और हेल्थ को अलग से जगह दी गई है। इनके भी कई खंड बना दिए गए हैं, जैसे टेक्नोलाजी में मोबाइल, गैजेट्स, इंटरनेट, वचरुअल रियलिटी, अर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और कंप्यूटिंग जैसे खंड हैं, तो साइंस में एनवायरमेंट, आउटर स्पेस, फिजिक्स, जेनेटिक्स आदि को शामिल किया गया है। इसमें लोकल न्यूज के लिए भी अलग से फिल्टरेशन की व्यवस्था की गई है। अब चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें एक भी कंटेंट गूगल के नहीं हैं। सभी विभिन्न अखबारों, पत्रिकाओं और इंटरनेट मीडिया से संकलित किए गए हैं। वह दूसरों के कंटेंट के सहारे ही अपनी श्रेष्ठता और लोकप्रियता कायम करने में कामयाब है।
यही कारण है कि पूरी दुनिया के प्रकाशक अब अपने कंटेंट से कमाई का हिस्सा मांग रहे हैं। इसे लेकर सबसे पहले आस्ट्रेलिया में कानून लाया गया। हालांकि गूगल ने इस नियम के खिलाफ आस्ट्रेलिया में अपनी सेवा बंद करने की धमकी दी थी। उसके बाद फ्रांस और स्पेन ने भी इस संबंध में नियम बनाए। इस साल के आरंभ में ही कनाडा सरकार ने एक संबंधित कानून बनाने की पेशकश करते हुए न्यूज पब्लिशर और टेक कंपनियों के बीच राजस्व बंटवारे में निष्पक्षता लाने का दबाव बनाया था। वैसे इसमें आस्ट्रेलिया, फ्रांस, नीदरलैंड, हंगरी और जर्मनी को सफलता मिल गई है। वहां के प्रकाशकों के साथ मई में गूगल ने कंटेंट के लिए राशि साझा करने के लिए समझौता किया है।
भारत में आइटी कानून में संशोधन
इसी संदर्भ में भारत सरकार ने भी आइटी कानून में संशोधन करने की योजना बनाई है। उसके अनुसार गूगल और फेसबुक पर समाचार प्रकाशकों के कंटेंट डिस्प्ले करने से अर्जित किए गए राजस्व को साझा करना पड़ सकता है। यह डिजिटल समाचार प्रकाशकों के लिए बड़ी जीत हो सकती है। बहरहाल, इस संदर्भ में भारत के इलेक्ट्रानिक एवं आईटी विभाग द्वारा की गई पहल के बारे में संबंधित राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर का कहना है कि वे इस मुद्दे को लेकर गंभीर हैं। इसका प्रारूप तैयार किया जा रहा है। अभी यह नहीं कहा जा सकता कि टेक कंपनियों को कंटेंट से होने वाली कमाई का कितना हिस्सा समाचार पत्रों को देना होगा। वैसे इसके लागू होने पर अल्फाबेट (गूगल और यूट्यूब), मेटा (फेसबुक, इंस्टाग्राम और वाट्सएप), ट्विटर और अमेजन के अलावा कंटेंट का उपयोग करने वाली दूसरी ग्लोबल सर्च इंजन कंपनियों द्वारा डिजिटल समाचार प्रकाशकों को भुगतान करने के लिए मजबूर किया जा सकता है।
साभार – दै0जा0







